Sunday, January 18, 2009

वो सात दिन ......

कहने में बहुत अजीब लगता है पर .........वो सात दिन मेरे जिंदगी के उन लम्हों में से है जो की अभी तक अनकहे है। मुझे तो ख़ुद में यकीन नही होता....लकिन फिर से उसे महसूस नही करना चाहती हूँ।
बात उन दिनों की है जब मैं शुरु शुरु कनाडा में अपने परिवार के साथ आयी थी ....मैं , मेरे पति(अभय) और मेरीबेटी (तनु)
अभी हमे आए हुए मुस्किल से १० -१२ दिन ही हुए थे और अभय को काम के सिलसिले से बाहर (जर्मनी) जानापड़ा ये बात मुझे पहले से ही पता थी फिर भी........ इस बात को मैं अपनाना नही चाहती थी मुझे तो समझ में हीनही रहा था की मैं अकेले कैसे रह पाऊँगी किसी को मैं जानती थी कोई मुझे जनता था ही मेरे पासकोई फ़ोन नम्बर था यहाँ के बारे में भी मैं कुछ नही जानती थी अभय भी परेशान थे इन बातो को
सोच
कर हमारे पास एक ही कंप्यूटर था जो की अभय के ऑफिस का था और जो उन्हें अपने साथ ले कर जाना था एक कंप्यूटर ही था जिसके जरिये हमलोग बाकि के लोगों से जुड़े हुए थे कभी पहले अकेले भी नही रही थी ...उसपर से अनजान देश फिर हमने एक कंप्यूटर लेने का डिसीजन किया जाने के एक शाम पहले हम कंप्यूटर शॉपपे गए बहुत सारे कंप्यूटर देखे पर कुछ पक्का नही कर पाए। ऐसा नही की हमे कोई कंप्यूटर नही पसंद नही आयापर बात ऐसी थी की हमने वेब पे कंप्यूटर की अच्छी डील देखि थी वो मिली नही.......और हमारे पास उतने पैसे भीनही थे ..क्यूंकि अभी salary भी नही मिली थी अगले सुबह का इंतज़ार इस लिए की शायद वो डील फिर से मिलजाए.... पर वो नही मिल पाई। इनसबों के बावजूद भी ये कंप्यूटर ले ही लिए। और उसे लेने के लिए उन्होंने अपनेवो पैसे खर्च कर दिए जो इन्हे जर्मनी के लिए मिले थे। आई लव यू sweetheart.... अब इनके जाने का समय भीहो रहा था और कंप्यूटर भी सेट करना था.....बहुत भागमभाग हो गयी थी ..फिर भी इन्होने उसे सेट कर दिया
पर मुझे पास्वोर्डतो बताना ही भूल गए। खैर मैंने उसे डिकोड कर लिया। अभय भी उधर परेशान थे
अब मैं और तनु....... लग रहा था जैसे कोई काम ही नही बचा हो करने के लिए ......दिन का तो फिर भी ठीक पररात में तो मुझे बहुत डर सा लगता था। मुझे नींद ही नही आती थी। रात में लाईट जला कर ही सोती थी। यहाँ तोदरवाजे में बोल्ट भी नही रहता है अन्दर से....बस एक लाक जो की बहार से खुल सकता था। ये बात अलग थी कीयहाँ बहुत सिक्यूरिटी होती है ..फिर भी कही कोई खटखट होती तो भी डर लग जाता था। जैसे ही सुबह होती थी तोऐसा लगता था की जान गयी हो एक एक दिन जैसे कितना बड़ा लगता था ..... दिन गिनना शायद इसे हीकहते हैं। एक इन्टरनेट ही था जिसके सहारे मैंने सात गुजर दिए। अभी सोच कर अजीब लगता है ..फिर भी हँसीनही आती ..पर मुस्कुरा जरूर देती हूँ। फिर से ऐसे रहना नही चाहती .....................

1 comment:

  1. Waah bhabhi. Kya baat hai....
    Aaplogon ka pyar dekh ke to meri aankhen bhar aayi khushi se :-)

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